पूरे देश में, अस्सी लाख से भी अधिक श्रमिक भवन एवं अन्य संनिर्माण कार्यों में संलग्न
हैं। यह श्रमिक वर्ग, भारत के असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के सबसे संवेदनशील वर्गों
में से एक है। उनका कार्य अस्थायी प्रकृति का है, नियोक्ता और कर्मचारी के बीच संबंध
अस्थायी है, कार्य का समय अनिश्चित है। इन श्रमिकों को मिलने वाली बुनियादी जरूरतें
व कल्याण सुविधाएं अपर्याप्त हैं। जीवन और अंग का खतरा भी निहित है। अब तक पर्याप्त
वैधानिक प्रावधानों के अभाव में, दुर्घटनाओं की संख्या और प्रकृति के बारे में अपेक्षित
जानकारी प्राप्त करना काफी मुश्किल था और इसके कारण उत्तरदायित्व तय करने या सुधारात्मक
उपाय करने का काम आसान नहीं था। यद्यपि कुछ केन्द्रीय अधिनियमों के प्रावधान, भवन व
अन्य संनिर्माण श्रमिकों के लिए लागू थे फिर भी इन कर्मचारियों की सुरक्षा, कल्याण
और सेवा की अन्य शर्तों को विनियमित करने के लिए एक व्यापक केन्द्रीय कानून की आवश्यकता
महसूस की गयी। 18 मई 1995 को आयोजित 41 वें श्रम मंत्रियों के सम्मेलन के निर्णय के
अनुपालन में, राज्य श्रम मंत्रियों की समिति ने इस विषय पर केन्द्रीय कानून के लिए
अपनी आम सहमति व्यक्त की थी। भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिकों के रोजगार व सेवा की
शर्तों को विनियमित करने और उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए उपाय करने के
उद्देश्य से 3 नवंबर 1995 को, संसद के सत्र में न होने के कारण, राष्ट्रपति द्वारा
भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोजगार एवं सेवा की शर्तों का विनियमन) अध्यादेश,
1995 (1995 का अध्यादेश 14) लागू किया गया। इस अध्यादेश को प्रतिस्थापित करने के
लिए, 1 दिसंबर 1995 को लोकसभा में एक विधेयक पेश किया गया। चूंकि विधेयक पर विचार नहीं
किया जा सका जिसके कारण यह व्यपगत हो गया। 5 जनवरी 1996 को, राष्ट्रपति ने भवन एवं
अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोजगार एवं सेवा शर्तों का विनियमन) अध्यादेश, 1996 (1996
का अध्यादेश 3) प्रख्यापित किया। इस अध्यादेश को प्रतिस्थापित करने के लिए एक विधेयक
संसद में पेश किया गया जो पारित नहीं किया जा सका और राष्ट्रपति ने 27 मार्च 1996 को
भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोजगार एवं सेवा शर्तों का विनियमन) दूसरा अध्यादेश,
1996 (1996 का अध्यादेश 15) प्रख्यापित किया। जैसा कि यह अध्यादेश संसद के अधिनियम
द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सका, राष्ट्रपति ने 20 जून 1996 को भवन एवं अन्य
संनिर्माण श्रमिक (रोजगार एवं सेवा शर्तों का विनियमन) तीसरा अध्यादेश, 1996 (1996
का अध्यादेश 25) प्रख्यापित किया। इस अध्यादेश को प्रतिस्थापित करने के क्रम में
भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोजगार एवं सेवा शर्तों का विनियमन) विधेयक संसद
में पेश किया गया।
उद्देश्य एवं कारण
- यह अनुमानित है कि देश में लगभग 85 लाख श्रमिक भवन एवं अन्य संनिर्माण कार्यों में
संलग्न हैं। भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक भारत में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के
सबसे संवेदनशील वर्गों में से एक हैं जिनकी संख्या काफी अधिक है। श्रमिकों के जीवन
व उनके अंगों के लिए निहित जोखिम भवन एवं अन्य संनिर्माण कार्यों की विशेषता है। आकस्मिक
प्रकृति, नियोक्ता और कर्मचारी के बीच अस्थायी संबंध, अनिश्चित कार्य समय, बुनियादी
सुविधाओं का अभाव और कल्याणकारी सुविधाओं की अपर्याप्तता भी इस प्रकार के कार्यों की
विशेषता है। अपर्याप्त वैधानिक प्रावधानों के अभाव में, दुर्घटनाओं की संख्या और प्रकृति
के बारे में अपेक्षित जानकारी भी सामने नहीं आ पाती है। इस प्रकार की जानकारी के अभाव
में, जिम्मेदारी तय करना या कोई सुधारात्मक कार्रवाई करना मुश्किल होता है।
- यद्यपि कुछ केन्द्रीय अधिनियमों के प्रावधान, भवन व अन्य संनिर्माण श्रमिकों के लिए
लागू थे फिर भी इन कर्मचारियों की सुरक्षा, कल्याण और सेवा की अन्य शर्तों को विनियमित
करने के लिए एक व्यापक केन्द्रीय कानून की आवश्यकता महसूस की गयी। राज्य सरकारों और
संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों से परामर्श किए जाने पर उनमें से अधिकतर ने एक ऐसे कानून
का पक्ष लिया। इसके अलावा, 18 मई 1995 को निवर्तमान केंद्रीय श्रम मंत्री की अध्यक्षता
में आयोजित 41 वें श्रम मंत्रियों के सम्मेलन के निर्णय के अनुपालन में गठित राज्य
श्रम मंत्रियों की समिति की एक बैठक में इस विषय पर केन्द्रीय कानून के लिए अपनी आम
सहमति व्यक्त की थी।
- उपरोक्त वर्णित परिस्थितियों को देखते हुए, भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिकों के लाभ
के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और कल्याणकारी उपायों को प्रदान करने और नजर रखने के
लिए प्रत्येक राज्य में कल्याण बोर्ड का गठन करना आवश्यक है।उपरोक्त प्रयोजन के लिए,
5 दिसंबर, 1988 को राज्य सभा में पेश किये गये भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोजगार
एवं सेवा शर्तों का विनियमन) विधेयक, 1988 के प्रावधानों को परिवर्धित करते हुए एक
व्यापक कानून लाना उपयुक्त है। सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और कल्याणकारी उपायों को क्रियान्वित
करने के लिए, कल्याण बोर्ड के लिए पर्याप्त धन सुनिश्चित करने हेतु भवन एवं अन्य संनिर्माण
कार्यों पर नियोक्ताओं द्वारा वहन की गई संनिर्माण लागत पर उपकर लगाना आवश्यक है।
- जैसा कि संसद सत्र में नहीं थी और लम्बे समय से उक्त कानून की मांग को पूरा करने के
लिए सरकार द्वारा महसूस की जाने वाला तात्कालिकता को देखते हुए, राष्ट्रपति ने भवन
एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोजगार एवं सेवा की शर्तों का विनियमन) अध्यादेश 1995 (1995
का अध्यादेश 14) के साथ 3 नवम्बर 1995 को उपकर लगाने के लिए एक और अध्यादेश प्रख्यापित
किया।
- संसद के अधिनियम द्वारा उक्त अध्यादेश को प्रतिस्थिपत करने के लिए भवन एवं अन्य संनिर्माण
श्रमिक (रोजगार एवं सेवा की शर्तों का विनियमन) विधेयक, 1995 लोकसभा में 1 दिसंबर 1995
को पेश किया गया था। चूंकि लोकसभा के 1995 के शीतकालीन सत्र और 1996 के बजट सत्र में
इस विधेयक पर विचार नहीं किया जा सका, इसलिए विधायी संरक्षण को निरंतर प्रभावी बनाए
रखने के उद्देश्य से भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन)
अध्यादेश, 1996 और भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन)
दूसरा अध्यादेश, 1996 (1996 का अध्यादेश 15) क्रमशः 5 जनवरी, 1996 और 27 मार्च 1996
को प्रख्यापित किये गये। 10 वीं लोकसभा के विघटन के साथ ही, भवन एवं अन्य संनिर्माण
श्रमिक (रोजगार एवं सेवा शर्तों का विनियमन) विधेयक-1995 व्यपगत हो गया। संविधान के
अनुच्छेद 123 (2) (d) के उपबंधों के आधार पर, 27 मार्च 1996 को प्रख्यापित भवन एवं
अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोजगार एवं सेवा शर्तों का विनियमन) दूसरा अध्यादेश भी, 4 जुलाई
1996 के प्रभाव से निष्प्रभावी हो गया। इस मुद्दे की तात्कालिकता और जैसाकि संसद सत्र
में नहीं थी, इसके लिए विधायी संरक्षण को निरंतर प्रभावी बनाए रखने के उद्देश्य से,
राष्ट्रपति ने 10 जून 1996 को भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोजगार एवं सेवा शर्तों
का विनियमन) तीसरा अध्यादेश 1996 (1996 का अध्यादेश 25) प्रख्यापित किया।
- भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोजगार एवं सेवा की शर्तों का विनियमन), तीसरा अध्यादेश,
1996, अन्य बातों के साथ निम्नलिखित प्रावधान करता हैः
(i) उस प्रत्येक प्रतिष्ठान को समाहित करने का प्रावधान जो किसी भी भवन या अन्य संनिर्माण
कार्य में वर्तमान में या पिछले बारह महीनों में किसी भी दिन पचास या अधिक श्रमिक नियोजित
करता है
(ii) विभिन्न प्रतिष्ठानों के संबंध में ष्समुचित सरकारश् को परिभाषित करना और अधिसूचित
करने के लिए केन्द्र सरकार को सक्षम बनाना और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम जिनके संबंध
में केन्द्र सरकार समुचित सरकार होगी
(iii) उक्त अध्यादेश के प्रशासन से उत्पन्न मामलों पर समुचित सरकार को सलाह देने के
लिए केन्द्र और राज्य सलाहकार समिति का गठन;
(iv) समुचित सरकार द्वारा नियम बनाने से संबंधित मामलों पर सलाह देने के लिए विशेषज्ञ
समिति का गठन।
(v) संनिर्माण श्रमिकों को नियोजित करने वाले प्रतिष्ठानों का पंजीकरण, और पंजीकरण
अधिकारियों की नियुक्ति;
(vi) उक्त अध्यादेश के तहत लाभार्थियों के रूप में संनिर्माण श्रमिकों का पंजीकरण और
उनके पहचान कार्ड आदि, के लिए प्रावधान
(vii) राज्य सरकारों द्वारा कल्याण बोर्डों का गठन और कोष के तहत लाभार्थियों का पंजीकरण
(viii) राज्य सरकारों द्वारा गठित कल्याण बोर्ड के संसाधनों के वित्तीयन व संवर्धन
के लिए प्रावधान
(ix) भवन संनिर्माण श्रमिकों के लिए सामान्य कार्य दिवस का कार्य समय नियत करना, साप्ताहिक
व सवैतनिक विश्राम दिवस, अधिक समय के लिए मजदूरी, बुनियादी कल्याण सुविधाएंरू जैसे
पीने का पानी, शौचालय और मूत्रालय, शिशु गृह, प्राथमिक चिकित्सा, कैंटीन आदि का प्रावधान
करना
(x) सभी संनिर्माण श्रमिकों के लिए कार्य स्थल पर या आसपास अस्थायी आवास का प्रावधान
(xi) सुरक्षा समितियों व सुरक्षा अधिकारियों की नियुक्ति और दुर्घटनाओं को अनिवार्य
रूप से अधिसूचित करने के प्रावधान सहित संनिर्माण श्रमिकों के लिए सुरक्षा और स्वास्थ्य
उपायों के लिए पर्याप्त प्रावधान करना;
(xii) राज्य स्तर पर महानिरीक्षक और केन्द्रीय स्तर पर निरीक्षण महानिदेशक की अध्यक्षता
में सुरक्षा उपायों के लिए मॉडल नियम बनाने हेतु केन्द्र सरकार को सशक्त बनाना;
(xiii) केन्द्रीय स्तर पर निरीक्षण महानिदेशक और राज्य स्तर पर महानिरीक्षक सहित निरीक्षण
स्टाफ की नियुक्ति के लिए प्रावधान;
(xiv) सुरक्षा प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने और दुर्घटनाओं की रोकथाम, मजदूरी
का समय पर भुगतान आदि के संबंध में नियोक्ताओं का उत्तरदायित्व तय करने के संबंध में
विशेष उपबंध
(xv) इस विधेयक के तहत दंडनीय अपराध को अदालत द्वारा संज्ञान में लेनेय सद्भावना के
साथ की गई कार्यवाही को संरक्षण प्रदान करनेय उल्लंघन, अवरोध, अतिक्रमण व अपराध के
लिए, अर्थ दंड का प्रावधान
(xvi) भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिकों के लिए कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 लागू
करना; और
(xvii) राज्यों को निर्देश देने और उक्त अध्यादेश के प्रावधानों को प्रभावी बनाने में
उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए केन्द्र सरकार को सशक्त बनाना।
- यह विधेयक भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक ;रोजगार एवं सेवा शर्तों का विनियमनद्ध तीसरा
अध्यादेश, 1996 को प्रतिस्थापित करेगा।
1996 का अधिनियम 27
भवन एवं अन्य संनिर्माण श्रमिक (रोजगार एवं सेवा शर्तों का विनियमन) विधेयक संसद
के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया और 19 अगस्त 1996 को राष्ट्रपति ने अपनी स्वीकृति
प्रदान की। कानून की पुस्तकों में यह भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा
शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1996 (1996 का 27) के रूप में प्रकाशित हुआ।
|
पेज
|
1
|
|
|
2
|
|
|
3
|
कुल 12
|
|